भारत में स्त्री
समाज रूपी रथ एक पहिया से नहीं चल सकता। उसे सुचारू रूप से चलने के लिए दोनों पहियों का सही व मजबूत होना जरूरी है| यदि एक पहिया कमजोर हो और दूसरा पहिया कितना भी मजबूत क्यों ना हो वह रथ सही रूप से गतिमान नहीं हो सकता।
वैदिक काल में स्त्रियों की दशा उन्नत थी तथा अनेक अधिकार प्राप्त थे| धीरे-धीरे उनकी दशा में अवनति होती गई व अधिकार सिमटते गए| दुनिया जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई पुरुषों ने अपने लिए, " हमारे यह अधिकार है" की घोषणा कर दी और स्त्रियों के लिए, " तुम्हारे यह कायदे हैं" का निर्णय सुना दिया।
आजादी के बाद स्त्रियों की दशा में अवश्य बदलाव हुआ है लेकिन यह अभी पर्याप्त नहीं है । हजारों वर्षों की ज्ञान-विज्ञान व संस्कृति पर गर्व करने वाला देश समाज की मानसिक यात्रा में अभी भी पीछे है। समाज स्त्रियों के कदम- कदम पर उनकी राह में नियम-कायदो और नजर का खंजर गाड़े बैठा है| स्त्रियों ने कमाने का अवसर तो पा लिया लेकिन समाज ने बदले मे चालू स्त्री का प्रमाणपत्र दे दिया|
आज भी बहुसंख्यक स्त्रियों की दशा सोचनीय है। पुरुषों ने स्त्रियों को समझा रखा है कि वे कमजोर है, दीन है और वे मान बैठी है । दरअसल कोई झूठी बात बार-बार हजारों वर्षों से प्रचारित हो रही हो तो लोग उसे सही मान बैठते हैं और मानव मस्तिष्क में वह स्वीकृत हो जाता है। जिस प्रकार से शुद्रों को समझाया जाता रहा कि उनका ज्ञान पर कोई अधिकार नहीं है और उन्होंने मान लिया की वे वाकई में ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते, उसी प्रकार स्त्रियों ने भी स्वीकार कर रखा है कि वे कमजोर व दीन है|
आज भी देश की स्थिति यह है कि यदि घर में लड़की पैदा होती है तो बड़े ही दुखी मन से स्वीकार किया जाता है और बेटा होने पर बड़ा ही हर्षोल्लास मनाया जाता है। सबसे आश्चर्य की बात यह है इस स्वीकृति में स्त्री का बड़ा हाथ होता है। जिन माताओं के बारे में कहा जाता है कि वे बच्चों में भेद नहीं करतीं वे माताएँ भी बेटों को विशेषाधिकार देती हैं तथा बेटियों को अनेक मूल अधिकारों से वंचित रखती हैं। पता नहीं ये स्त्रियाँ आने वाली स्त्रियों पर कब दया करेंगी। दरअसल ये स्त्रियां भी पुरुषों से इतना प्रभावित है कि इन्हें पता ही नहीं है कि बेटियों के साथ अन्याय हो रहा है।
आज के समय की एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि स्त्रियों को शिक्षित इसलिए किया जा रहा है कि उनकी अच्छे घर में शादी हो सके, एक सफल पति को पकड़ सकें| लोग इसलिए नहीं शिक्षित कर रहे है कि वे शिक्षा का कोई सार्थक उपयोग कर सकें। एक शिक्षित स्त्री यदि उन्ही गंदी और शोषणयुक्त मान्यताओं को ही मानती है और उसी में फंस कर रह जाती है तो उसकी शिक्षा का क्या लाभ?
दरअसल पुरुष,स्त्रियों को गुलामी से आजादी नहीं देना चाहता। पुरुषों का केवल अहंकार है कि जो यह कहते हैं कि उनकी पत्नियां काम नहीं करेंगी। पुरुष सदा से ही चाहते है कि स्त्रियों सदैव उन पर निर्भर रहे । यदि किसी को गुलाम बनाना है तो उसे आर्थिक दृष्टि से पंगु कर दो | पुरुषों ने स्त्रियों के संबंध में यही किया| साड़ी उसे चाहिए तो पुरुष पर निर्भर होनी चाहिए, भोजन चाहिए तो पुरुष पर निर्भर होनी चाहिए, जीवन जीने के लिए भी पुरुष पर निर्भर होनी चाहिए। समाज ने स्त्रियों को सिखाया है कि पुरुष वृक्ष हैं और स्त्रियां लताएँ और वे बिना वृक्ष के खड़ी नहीं हो सकती| मैं कहता हूं कि इससे झूठी और पाखंडी बात और कुछ भी नहीं हो सकती , स्त्रियां भी वृक्ष हो सकती हो और अपने पैर पर खड़ी हो सकती हैं|
अपनी सभ्यता पर गर्व करने वाला देश अभी भी स्त्री व पुरुष के बीच मित्रता के भाव को मन से स्वीकार नहीं कर सका है। आज भी एक लड़की किसी लड़के के साथ बाहर हो और वे कहे की हम मित्र हैं तो समाज उनके बीच मित्रता नहीं कामुकता का संबंध देखता है|
स्त्रियों को अपनी स्थिति बदलने के लिए क्रांति करनी पड़ेगी लेकिन स्त्री क्रांतिकारी होने में बड़ी दुविधा महसूस करती हैं उसके लिए कठिनाई है क्योंकि उसने कभी क्रांति के बारे में नहीं सोचा उसने सोचा ही नहीं की उसके जीवन की जो स्थिति है वह अन्यथा हो सकती है या नहीं, उसके पुरुष से जो संबंध है वे भिन्न हो सकते हैं या नहीं, उसकी जो परिवार में स्थिति है वह बदला जा सकता है या नहीं| इसके संबंध में स्त्री को चिंतन करना पड़ेगा, उन्हें सोचना पड़ेगा कि अपने जीवन को उसी धर्रे में मत डालें जिसमें अतीत की बहुत सारी स्त्रियों ने अपने को डाल दिया |
इसके लिए उन्हें तकलीफ उठानी पड़ेगी, परेशानी झेलनी पड़ेगी लेकिन इस बात का ध्यान रहे की स्वतंत्रता के लिए झेले गए दुख आनंदपूर्ण होते है और गुलाम बन कर पाए सुख दुखदाई होते है|
बागीश धर राय
( इतिहास शोधार्थी)
Bahut hi sandar and saty line.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद❤
हटाएंसमाज ने स्त्रियों को सिखाया है कि पुरुष वृक्ष हैं और स्त्रियां लताएँ और वे बिना वृक्ष के खड़ी नहीं हो सकती| मैं कहता हूं कि इससे झूठी और पाखंडी बात और कुछ भी नहीं हो सकती , स्त्रियां भी वृक्ष हो सकती हो और अपने पैर पर खड़ी हो सकती हैं|
जवाब देंहटाएंपंक्ति दिल को छू गई।
👍👍👍👍👍👍👍👍
धन्यवाद❤
हटाएंSahi kaha aapne hum avashy aisi sakaratmak soch ka smarthan krte hai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद❤
हटाएंShaandar article
जवाब देंहटाएंधन्यवाद❤
हटाएंसटीक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद❤
हटाएंBahut hi khubsurat lekh hai bhai Saheb bahut khubsurat .
जवाब देंहटाएंVicharniy lekh hai 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🎇
धन्यवाद❤
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